मुंशीगंज गोलीकांड पार्ट- 3
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. 7 जनवरी 1921 को रायबरेली के मुंशीगंज गोलीकांड पर लीपा-पोती करने के लिये, लखनऊ से एक सरकारी घोषणा प्रसारित की गई और तार द्वारा सभी समाचार पत्रों में प्रकाशनार्थ भेजी गई। घोषणा में कहा गया था- ‘रायबरेली के किसानों के उपद्रव के सम्बन्ध में सरकार का दृष्टिकोण है कि 7 जनवरी को लोगों की एक भीड़ जेल के बाहर जाकर खड़ी हो गई, जिसमें बहुत से कैदी बंद थे। भीड़ नदी के उस पार चली गई परन्तु मुंशीगंज के पास भीड़ फिर एकत्रित हो गई। भीड़ दुर्दमनीय हो गई और उसने पुलिस सवारों पर आक्रमण कर दिया। पुलिस सवारों को भी विवश होकर गोली चलानी पड़ी। गोलियों से चार आदमी मारे गए। पांच या पांच से अधिक घायल हुए। एक और घायल आदमी बाद मे मर गया। इस समय तक 9 आदमियों की मरने की सूचना प्राप्त हुई है। घायलों की संख्या भी एक दर्जन बताई जा रही है। अधिक संख्या में पुलिस के आ जों से शांति रखी जा सकी। लोगों के बाज़ार पर आक्रमण करने के इरादे असफल हुऐ। कमिश्नर कि रिपोर्ट है कि स्थिति सुधर रही है। उनका कहना है कि तालुकेदारों की राजी से 650 कैदियों को छोड़ दिया गया है। गर्वनर ने कमिश्नर और जिले के अधिकारियों को शांति स्थापित करने के लिये तार द्वारा धन्यवाद दिया है। जिले की प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिये सब जातियों से मिलकर रहने की आशा प्रकट की है।’
इस प्रकार मुंशीगंज के शहीदों की लाली को धूल से ढकने का प्रयास सरकार द्वारा किया गया, किन्तु घटना इतनी विषम थी कि सत्यता छिपाये छिप न सकी और देश के तमाम समाचार पत्रों ने घटना का सही समाचार मोटे-मोटे शीर्षकों में प्रकाशित किया और मुंशीगंज गोलीकांड जलियांवाला कांड के बाद, देश का प्रमुख गोलीकांड बन गया।
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