पिछले कुछ दिनों से बिहार की राजनीति में शिष्टाचार मुलाकात का जैसे दौर चल पड़ा है। जिस राजनीति में कोई बिना किसी हित के किसी से नहीं मिलता, वहां राजनीतिक झंझावात के बाद अचानक ‘शिष्टाचार’ की चर्चा गजब चल निकली है। 7 जनवरी को अचानक जदयू दफ्तर में RCP सिंह को बधाई देने पहुंच गए भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव। फिर शाम में नीतीश-RCP से बिहार के दोनों डिप्टी CM के साथ भूपेंद्र यादव, डॉ. संजय जायसवाल मिले और सारी बातों को शिष्टाचार मुलाकात का नाम दे दिया गया। सियासी मरहम की यह 2 देखी-दिखाई मुलाकातें थीं। बिहार की राजनीति में इनके अलावा 3 और ऐसी मुलाकातें हुईं, जिन्हें शिष्टाचार का नाम दिया जा रहा है। लेकिन, यह इतनी भी औपचारिक नहीं। क्यों, आइए जानते हैं-
अमित शाह से सुशील मोदी की मुलाकात तो जरूरी…
5 जनवरी की शाम को दिल्ली गए सुशील मोदी शुक्रवार को दिल्ली में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिले। अमित शाह से सुशील मोदी की यह मुलाकात उनके राज्यसभा सांसद बनने के बाद हुई पहली औपचारिक मुलाकात थी। इस मुलाकात को सुशील मोदी की तरफ से शिष्टाचार मुलाकात बताया गया, लेकिन इसे केंद्र के संभावित मंत्रिमंडल विस्तार से अलग नहीं देखा जा सकता है। इस विस्तार में सुशील मोदी को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की बात पक्की है, लेकिन उनकी राह में बिहार से ही रोड़ा भी अटकाया जा रहा है। उनकी पार्टी के ही दिग्गज रोड़ा अटका रहे हैं। इसलिए, एक मुलाकात तो जरूरी…..।
शाहनवाज हसन का नीतीश कुमार से मिलना वैसे तो नहीं
बिहार की सियासी हलचल से जुड़ी दूसरी खास मुलाकात शुक्रवार को ही हुई। पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने सचिवालय पहुंच गए। इस मुलाकात से भले ही बिहार की सियासत पर बहुत कोई असर नही दिखने वाला हो, लेकिन इनकी मुलाकात को दो धुर विरोधियों का एक जगह आना जरूर कहा जा रहा है। माना जाता रहा है कि शाहनवाज हुसैन बिहार भाजपा में नीतीश विरोधी सुर के अगुआ रहे हैं। इसका असर शाहनवाज के कॅरियर पर भी खूब पड़ा है। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में शाहनवाज को भागलपुर से टिकट इसलिए नही मिल सका, क्योंकि यह नीतीश-निश्चय का हिस्सा था। यह वो दौर था जब सुशील मोदी बिहार भाजपा के सबसे प्रभावी चेहरे थे और जिन्हें नीतीश का बेहद खास माना जाता था। अब शुक्रवार को जब नीतीश कुमार को शाहनवाज हुसैन CM बनने की बधाई देने बिहार सचिवालय पहुंचे तो दोनों नेताओं के हाव-भाव पूरे तरह बदले हुए थे। मतलब, यूं ही तो नहीं ही थी यह मुलाकात।
गवर्नर से मिलीं रेणु देवी, लेकिन इस बार टास्क भी था
बिहार सचिवालय से 500 मीटर की दूरी पर एक और ‘शिष्टाचार मुलाकात’ राज्यपाल फागू चौहान और उपमुख्यमंत्री रेणु देवी की हुई। रेणु इस पद पर आने के पहले भी गवर्नर से मिलती रही हैं, लेकिन गुरुवार रात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भाजपा नेताओं की मुलाकात के बाद शुक्रवार को रेणु देवी की राज्यपाल से मुलाकात एक टास्क के साथ थी। राज्यपाल कोटे वाली मनोनयन की 12 विधान परिषद की सीटों पर जो NDA में पक रहा है, उसका कुछ मसाला गवर्नर हाउस से भी आएगा क्योंकि अंतिम तौर पर यह गवर्नर के कोटे की सीटें हैं। सत्ता के दोनों बड़े दलों के बीच 50:50 पर बात तय हो गई है, लेकिन कोटे में कोटा का कुछ मामला अटक रहा है, जिसपर रेणु देवी को गवर्नर के क्लियरेंस का टास्क दिया गया है।
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